Saturday 24 March 2018

80. सराय रोहिल्ला स्टेशन से बीकानेर २ मार्च २०१८



माउंट आबू  से आने के बाद काम की जद्दोजहद; जिन्दगी की व्यस्ताओ में कब ना जाने ६ महीने बीत गये और २०१८ कब आ गया पता ही नहीं चला पर कैलेंडर देखने के बाद दिमाग में खुजली शुरू हुई अब कहा जाया घूमने के लिए और किस समयl पहले सोचा गया की २५ २६ जनवरी में कही जाया जाये पर बात बन नहीं पाई। खैर किसी तरह सोचा साची करके तय किया गया की होली वाले सप्ताह में कार्यक्रम बनाया जाये।

खैर अब खीचतान शुरू हुई की जाया कहा जाए जिन जगहों पे जाने का सोचा या तो बहुत दूर थी या फिर बहुत महँगी पड़ रही थी पर अब जाने का सोच लिया है तो जाना तो है ही। अब बात की गयी बीवी से तो घूम फिर कर फिर से राजस्थान जाने की इजाजत मिल गयी और इस तरह हमारा कार्यक्रम तय हुआ बाप बेटे की जोड़ी वाले शहरों के लिए यानी की बीकानेर और जोधपूर के लिए तो फटाफट टिकट कराये गए।

खैर इंतज़ार की घड़ियाँ ख़त्म हुई और २ मार्च की शाम होली खेल कर घर से वापिस आये और ८ बजे सराय रोहिल्ला स्टेशन के लिए निकल पड़े; इस स्टेशन पे मैं पहली बार जा रहा था और कोई खास जानकारी नहीं थी; छोटा सा स्टेशन है हमारी ट्रेन रात्रि में  बीकानेर सुपर फ़ास्ट १०:४५ पे थी पर इस ट्रेन के साथ बड़ी गड़बड़ थी इसके नंबर में क्योकि ये पहले बीकानेर से आ कर दुसरे नंबर पे भगत की कोठी तक जाती है और उसके बाद वहा से वापिस आ कर फिर नए नंबर के साथ सराय रोहिल्ला से बीकानेर तक। खैर इसके खुलने के बाद हम भी इसमें अपने स्थानों पे विराजमान हो गये ज्यादा भीड़ भी नहीं थी। बीवी और बेटी की नीचे की सीट थी और मेरी साइड लोअर वाली भले ही टिकट पे लोअर बर्थ लिखा हुआ था खैर कोई नहीं जी बैठ गये और जैसे टी.टी. साहब आये उन्हें टिकट दिखाया और उनसे पता कर लिया की सामने वाली सीट खाली है तो अपन उस पे पसर लिए और अब मैं आराम से बैठे बैठे पूरे रास्ते बाहर देखते हुए जा सकता था पर

गुरुग्राम से एक आंटी और अंकल जी जिनकी आयु तकरीबन ६५ से ७० साल होगी एक १३ १४ साल की बच्ची के साथ आये और उनकी दोनों सीट ऊपर की थी पर साइड वाली सीट खाली देख कर उन्होंने उस पे बिस्तर लगा लिया और तीनों लोग उस पे बैठ गए; थोड़ी देर तो मैंने देखा; अब एक दुविधा थी एक तरफ तो रात बाहर नए नए स्टेशन देखने का चाव और एक तरफ उन आंटी अंकल जी के रात भर बैठने की समस्या; खैर थोड़ी देर बाद मैंने उनसे पूछा की आप लोग ऐसे ही बैठे बैठे बीकानेर तक जायेंगे क्या; अंकल बोले हाँ सीट ऊपर की है तो क्या कर सकते है फिर मैंने उनसे बोला की आप इधर बिस्तर लगा लो मैं ऊपर वाली सीट पे चला जाऊंगा; वो मना करने लगे की नहीं नहीं ऐसे ही सही है चले जायेंगे पर मैंने उन्हें समझाया की मेरी तो सीट वो सामने वाली ही है; ये वाली खाली ही है बीकानेर तक तो इसलिए इधर आ गया आप लोग कहा रात भर बैठे बैठे जायेंगे; आखिर आंटी जी को बोला की मेरी माँ भी होती तो उनके लिए कुछ ना कुछ व्यवस्था करता ही न

खैर फिर उनका  बिस्तर नीचे वाली सीट पे लगाया और अपना ऊपर वाली पे और फिर किसी तरह अंकल जी उस सीट पे आये और मैं ऊपर वाली पे पहुँच गया। सुबह उठ कर उनसे बातचीत में पता चला की उनका पुश्तेनी घर बीकानेर में ही है होली के बाद उनका पूरा परिवार बीकानेर में ३ ४ दिन के लिए इकट्ठा हो रहा है हमारी ट्रेन समय से १५ मिनट पहले स्टेशन पे पहुँच गयी और उतरते उतरते आंटी जी ने बहुत सारे आशीर्वाद मुझे और निधि दोनों को दे दिए और हम दोनों प्रफुल्लित मन से स्टेशन बाहर निकल आये और एक ऑटो तय कर के अपने होटल के लिए निकल पड़े






Monday 28 August 2017

79. 101 किताबें गज़लों की

जीवन के लिए मेरे बनाये सूत्रों में से एक ज्ञान जंहा से भी मिले बटोर लो; मेरा अपना बनाया हुआ सिद्धांत जिस से मेरा परिचय मेरी जीवन संगिनी ने उस समय कराया जब हम दोनों सड़क के किनारे खड़े हुए एक ठेले से कुछ खा रहे थे और मैं खाते खाते भी उसी के पास पड़े कूड़े के ढेर में पड़े हुए एक अख़बार के टुकड़े पे लिखे हुए एक लेख को पढने की कोशिश कर रहा था

हिंदी मेरी मातृभाषा है परन्तु हिंदी में अपनी भावनाओं को शब्दों में उकेरने की कला में शायद बिलकुल फिसड्डी; इस मामले में मैं खुद को अंग्रेजी भाषा के ज्यादा करीब पाता हूँ; अंग्रेजी भाषा के सुन्दर शब्दों का चुनाव कर जिस तरह भावनाओ की तान छेड़ सकता हूँ उसके लिए मैं अपने गुरु, अपने पथप्रदर्शक, अपने मित्र श्री निर्मल शेरिंग जी का हमेशा आभारी रहूँगा परन्तु इस भाषा का साहित्य मुझे कभी भी अपनी  तरफ आकर्षित नहीं कर सका जितना की मुझे हिंदी उर्दू के साहित्य ने किया।

शुरुवाती जीवन में आम बच्चों की तरह साहित्य सिर्फ पाठ्य पुस्तकों तक सीमित था, जिसे सिर्फ परीक्षा के लिए पढना था, पर ८० और ९० के दशक के बच्चों की तरह मेरा साहित्य भी उस समय की कॉमिक्स के प्रचलित कार्टून किरदारों, चाचा चौधरी, साबू, बिल्लू, पिंकी, नागराज, ध्रुव और क्रूक-बांड तक ही सिमित था, उम्र के चंद कदम आगे बढ़ने पे उपन्यास पढने का शौक लग गया जिसे लुग्द्दी साहित्य कहा जाता था, उस में भी अपने समय के मशहूर उपन्यासकार वेद प्रकाश शर्मा के उपन्यास पढने का अलग ही मज़ा था

खैर, उम्र और समझ बढ़ने के साथ ही साहित्य के लिए रूचि भी विकसित होती चली गयी। मेरे जीवन यात्रा के अनुभवों में से एक ऐसे ही एक साहित्य के पुजारी से परिचय भी है जिन से अभी तक मुलाकात का सौभाग्य तो प्राप्त नहीं हो पाया है पर हाँ उनकी दो पुस्तकों और उनके ब्लॉग को निरंतर पढने के बाद उनके व्यक्तित्व की विशालता का अंदाजा लगा सकता हूँ; स्वभाव से सरल परन्तु उनके ही शब्दों में जीवन से पूर्णतय: संतुष्ट

उनसे मेरा प्रथम परिचय अनतर्जाल की सहायता से हुआ था, काफी समय तक उनकी लेखनी के जादू को महसूस करता रहा पर कुछ समय पश्चात उसमे ठहराव पाया तो बड़ी हिम्मत जुटा कर उन्हें मेल भेज कर इस ठहराव का कारण पूछा तो बड़े ही स्नेह के साथ उनका उत्तर पा कर मन प्रफुल्लित हो गया और साथ में ही उनके द्वारा रचित उनकी दो पुस्तकों को पाने का निमंत्र्ण जो की उनके स्वभाव की सरलता को दर्शाता है

इस विशाल व्यक्तित्व का परिचय कराने के लिए तो मेरे पास शब्दों की कमी पड़ जाएगी पर इस कार्य के लिए मैं उनके ही शब्दों को चुरा लेता हूँ "अपनी जिन्दगी से संतुष्ट,संवेदनशील किंतु हर स्थिति में हास्य देखने की प्रवृत्ति.जीवन के अधिकांश वर्ष जयपुर में गुजारने के बाद फिलहाल भूषण स्टील मुंबई में कार्यरत,कल का पता नहीं।लेखन स्वान्त सुखाय के लिए" हिंदी ब्लॉग्गिंग की दुनिया में जाना पहचाना नाम नीरज गोस्वामी जी जो खुद तीन बेहतरीन किताबों के रचियता हैनीरज जी पेशे से इंजिनियर है और वर्तमान में भूषण स्टील्स में वाईस-प्रेसिडेंट के पद पे कार्यरत है

१.101 किताबें गज़लों की: अपने ब्लॉग पे की गयी किताबो की समीक्षा को ही पुस्तक का रूप दे अपने पाठकों को अनुग्रहित किया 

२.डाली मोगरे की: नीरज जी द्वारा रचित गज़लों का संग्रह। इस किताब में उनकी पहली ग़ज़ल का मत्ला ही आपको इस किताब को पढने पे मजबूर कर देगा

                समझेगा दीवाना क्या 
                बस्ती क्या वीराना क्या 

३.यायावरी यादों की: इस किताब को पढने का सौभाग्य अभी तक प्राप्त नहीं हो पाया है 

नीरज जी के ब्लॉग का पता :   http://ngoswami.blogspot.in/

शिवना प्रकाशन ने इनके द्वारा की गयी १०१ किताबों की समीक्षा को "१०१ किताबें गज़लों की"  के नाम से छापा है जिसका तीसरा संस्करण बाज़ार में इस समय उपलब्ध है। गर आप इनके ब्लॉग पे जा कर किताबों की दुनिया में अलग अलग किताबों की समीक्षा को पढेंगे तो आप को ऐसे लगेगा की आप पढ़ नहीं रहे है उस किताब के लिए शब्द आपके सामने खुद बखुद बोल रहे हों

जब आप इस किताब को पढेंगे तो आपको आश्चर्य होगा की बहुत कम नाम इस किताब में आपको ऐसे मिलेंगे जो आपने पहले से सुने हो या वो बहुत प्रसिद्ध हों भले ही इस किताब का हिस्सा बने शायर अनाम हो पर उनकी शायरी अनाम नहीं है; समीक्षा के साथ साथ जब आप इन शायरों के शेरों और गज़लों को पढेंगे तो आपके दिल से बस वाह वाह ही निकलेगी

इस किताब की सबसे अच्छी बात ये है की ये दूसरी किताब का सार बहुत कम शब्दों में समेट कर आपके सामने रख देगी और आपको उस किताब को खरीदने के लिए मजबूर कर देगी और उस शायर के लिए तारीफ के शब्दों का इस्तेमाल करने पे। ये नीरज जी की लेखनी का ही जादू है की पाठक अपने आपको इस किताब से बंधा हुआ पाता है

नीरज जी के लेखन की एक बात ये भी अच्छी है की वो पाठक को उनके द्वारा समीक्षित किताब को पाने का तरीका भी आपको बताएँगे क्योकि ज्यादातर शायर साहित्य सेवा के पथ पे निष्काम भाव से अग्रसरित है और शायद इसलिए ही नीरज जी ये कोशिश है उनके पाठक ऐसी हैरान करने वाली और जमीन से जुड़ी शायरी से अछूते ना रहे। मैं उन सौभाग्यशाली व्यक्तियों में से एक हूँ जिन्हें ये अमूल्य किताब नीरज जी ने खुद प्रदान की है

शायद ये उनकी समीक्षा का ही कमाल है की मैं राजेश रेड्डी और हस्ती मल हस्ती जैसे शायरों को सुन पाया पढ़ पाया। इस किताब की तारीफ के लिए चाहे कितना ही कुछ लिख लो कम ही है इसलिए आप सब सुधी पाठक भी इस किताब का लाभ उठाये

नीरज जी के ही शब्दों में इस किताब को पाने का तरीका 

शिवना प्रकाशन से संपर्क करके 

शिवना प्रकाशन पी. सी. लैब, सम्राट कॉम्प्लेक्स बेसमेंट बस स्टैंड , 
सीहोर - 466001 (म. प्र.) फ़ोन : 07562 - 405545, 0762 - 695918
E-mail: shivna.prakashan@gmail.com

या फिर नीरज जी को उनके मोबाइल (+91- 9860211911) पे  उनके इस बेहतरीन कार्य के लिए बधाई देते हुए इस किताब को प्राप्त करने का तरीका पूछ सकते है

या फिर आप नीरज जी को ईमेल neeraj1950@gmail.com भी कर सकते है



चलते चलते उनकी सरलता को दर्शाता उनका एक शेर 

'नीरज' सुलझाना सीखो 
मुद्दों को उलझाना क्या 




Wednesday 9 August 2017

78. दिन आज कयामत के आये है


दिन आज कयामत के आये है 
निगाहे चार आज कर आये है

दोस्त मेरे आये न आये 
रकीब तो मेरी कब्र पे आये है

मैकदे में रिंद आज फिर आये है 
साकी की निगाहो से जाम फिर छलका आये है

शेर तो हम रोज ही लिखते आये है 
पर आज ग़ज़ल कह आये है

लिखने को तो बहुत कुछ लिखते आये है 
नाम आज उसका लिख आये है

हम तो सदा ही सुनते आये है 
आज हाल-ए-दिल हम भी सुना आये है

यू तो दुआ रोज ही मांगते आये है 
'सागर' आज उससे उसी को मांग आये है

77. जल महल


जल महल; जयपुर देखने और घूमने के लिए बहुत कुछ; शायद एक बार और ये शहर मुझे अपने पास बुलाएगा 

76. जयपुर शहर


जयगढ़ किले से जयपुर शहर का विहंगम द्रश्य 

75. छोटी सी चिड़िया



पता नहीं इस चिड़िया का नाम क्या है पर है ये बहुत सुन्दर 

74. जयबाण तोप


ये है जयबाण तोप जयगढ़ के किले; अपने जीवन काल में सिर्फ एक बार ही प्रयोग की गयी है वो भी जब ये बन कर तैयार हो गयी और इसकी परीक्षा हुई अरे हाँ इन महाराज को बैठने के लिए ये ही जगह मिली बस 

73. चाल


चाल तो देखो इन महाराज की 

72. शान


वाह क्या शान है इनकी 

71. मोर


इन भाई साहब को कार में अपनी ही शक्ल दिख रही है और उसके बाद इन्होने कार का हाल बेहाल कर दिया 

70. मावठा झील और केसर क्यारी बाग


मावठा झील और केसर क्यारी बाग आमेर के किले से लिया गया चित्र 

69. माँ की ममता


ये है माँ की ममता; चाहे इन्सान हो या कोई जीव माँ आखिर माँ ही होती है 

68. मयूर



मन मयूर हो गया इन्हें देख कर; राजस्थान की एक बात अच्छी है यहाँ पशु पक्षियों के लिए मानवता अभी भी बची है