Monday 28 August 2017

79. 101 किताबें गज़लों की

जीवन के लिए मेरे बनाये सूत्रों में से एक ज्ञान जंहा से भी मिले बटोर लो; मेरा अपना बनाया हुआ सिद्धांत जिस से मेरा परिचय मेरी जीवन संगिनी ने उस समय कराया जब हम दोनों सड़क के किनारे खड़े हुए एक ठेले से कुछ खा रहे थे और मैं खाते खाते भी उसी के पास पड़े कूड़े के ढेर में पड़े हुए एक अख़बार के टुकड़े पे लिखे हुए एक लेख को पढने की कोशिश कर रहा था

हिंदी मेरी मातृभाषा है परन्तु हिंदी में अपनी भावनाओं को शब्दों में उकेरने की कला में शायद बिलकुल फिसड्डी; इस मामले में मैं खुद को अंग्रेजी भाषा के ज्यादा करीब पाता हूँ; अंग्रेजी भाषा के सुन्दर शब्दों का चुनाव कर जिस तरह भावनाओ की तान छेड़ सकता हूँ उसके लिए मैं अपने गुरु, अपने पथप्रदर्शक, अपने मित्र श्री निर्मल शेरिंग जी का हमेशा आभारी रहूँगा परन्तु इस भाषा का साहित्य मुझे कभी भी अपनी  तरफ आकर्षित नहीं कर सका जितना की मुझे हिंदी उर्दू के साहित्य ने किया।

शुरुवाती जीवन में आम बच्चों की तरह साहित्य सिर्फ पाठ्य पुस्तकों तक सीमित था, जिसे सिर्फ परीक्षा के लिए पढना था, पर ८० और ९० के दशक के बच्चों की तरह मेरा साहित्य भी उस समय की कॉमिक्स के प्रचलित कार्टून किरदारों, चाचा चौधरी, साबू, बिल्लू, पिंकी, नागराज, ध्रुव और क्रूक-बांड तक ही सिमित था, उम्र के चंद कदम आगे बढ़ने पे उपन्यास पढने का शौक लग गया जिसे लुग्द्दी साहित्य कहा जाता था, उस में भी अपने समय के मशहूर उपन्यासकार वेद प्रकाश शर्मा के उपन्यास पढने का अलग ही मज़ा था

खैर, उम्र और समझ बढ़ने के साथ ही साहित्य के लिए रूचि भी विकसित होती चली गयी। मेरे जीवन यात्रा के अनुभवों में से एक ऐसे ही एक साहित्य के पुजारी से परिचय भी है जिन से अभी तक मुलाकात का सौभाग्य तो प्राप्त नहीं हो पाया है पर हाँ उनकी दो पुस्तकों और उनके ब्लॉग को निरंतर पढने के बाद उनके व्यक्तित्व की विशालता का अंदाजा लगा सकता हूँ; स्वभाव से सरल परन्तु उनके ही शब्दों में जीवन से पूर्णतय: संतुष्ट

उनसे मेरा प्रथम परिचय अनतर्जाल की सहायता से हुआ था, काफी समय तक उनकी लेखनी के जादू को महसूस करता रहा पर कुछ समय पश्चात उसमे ठहराव पाया तो बड़ी हिम्मत जुटा कर उन्हें मेल भेज कर इस ठहराव का कारण पूछा तो बड़े ही स्नेह के साथ उनका उत्तर पा कर मन प्रफुल्लित हो गया और साथ में ही उनके द्वारा रचित उनकी दो पुस्तकों को पाने का निमंत्र्ण जो की उनके स्वभाव की सरलता को दर्शाता है

इस विशाल व्यक्तित्व का परिचय कराने के लिए तो मेरे पास शब्दों की कमी पड़ जाएगी पर इस कार्य के लिए मैं उनके ही शब्दों को चुरा लेता हूँ "अपनी जिन्दगी से संतुष्ट,संवेदनशील किंतु हर स्थिति में हास्य देखने की प्रवृत्ति.जीवन के अधिकांश वर्ष जयपुर में गुजारने के बाद फिलहाल भूषण स्टील मुंबई में कार्यरत,कल का पता नहीं।लेखन स्वान्त सुखाय के लिए" हिंदी ब्लॉग्गिंग की दुनिया में जाना पहचाना नाम नीरज गोस्वामी जी जो खुद तीन बेहतरीन किताबों के रचियता हैनीरज जी पेशे से इंजिनियर है और वर्तमान में भूषण स्टील्स में वाईस-प्रेसिडेंट के पद पे कार्यरत है

१.101 किताबें गज़लों की: अपने ब्लॉग पे की गयी किताबो की समीक्षा को ही पुस्तक का रूप दे अपने पाठकों को अनुग्रहित किया 

२.डाली मोगरे की: नीरज जी द्वारा रचित गज़लों का संग्रह। इस किताब में उनकी पहली ग़ज़ल का मत्ला ही आपको इस किताब को पढने पे मजबूर कर देगा

                समझेगा दीवाना क्या 
                बस्ती क्या वीराना क्या 

३.यायावरी यादों की: इस किताब को पढने का सौभाग्य अभी तक प्राप्त नहीं हो पाया है 

नीरज जी के ब्लॉग का पता :   http://ngoswami.blogspot.in/

शिवना प्रकाशन ने इनके द्वारा की गयी १०१ किताबों की समीक्षा को "१०१ किताबें गज़लों की"  के नाम से छापा है जिसका तीसरा संस्करण बाज़ार में इस समय उपलब्ध है। गर आप इनके ब्लॉग पे जा कर किताबों की दुनिया में अलग अलग किताबों की समीक्षा को पढेंगे तो आप को ऐसे लगेगा की आप पढ़ नहीं रहे है उस किताब के लिए शब्द आपके सामने खुद बखुद बोल रहे हों

जब आप इस किताब को पढेंगे तो आपको आश्चर्य होगा की बहुत कम नाम इस किताब में आपको ऐसे मिलेंगे जो आपने पहले से सुने हो या वो बहुत प्रसिद्ध हों भले ही इस किताब का हिस्सा बने शायर अनाम हो पर उनकी शायरी अनाम नहीं है; समीक्षा के साथ साथ जब आप इन शायरों के शेरों और गज़लों को पढेंगे तो आपके दिल से बस वाह वाह ही निकलेगी

इस किताब की सबसे अच्छी बात ये है की ये दूसरी किताब का सार बहुत कम शब्दों में समेट कर आपके सामने रख देगी और आपको उस किताब को खरीदने के लिए मजबूर कर देगी और उस शायर के लिए तारीफ के शब्दों का इस्तेमाल करने पे। ये नीरज जी की लेखनी का ही जादू है की पाठक अपने आपको इस किताब से बंधा हुआ पाता है

नीरज जी के लेखन की एक बात ये भी अच्छी है की वो पाठक को उनके द्वारा समीक्षित किताब को पाने का तरीका भी आपको बताएँगे क्योकि ज्यादातर शायर साहित्य सेवा के पथ पे निष्काम भाव से अग्रसरित है और शायद इसलिए ही नीरज जी ये कोशिश है उनके पाठक ऐसी हैरान करने वाली और जमीन से जुड़ी शायरी से अछूते ना रहे। मैं उन सौभाग्यशाली व्यक्तियों में से एक हूँ जिन्हें ये अमूल्य किताब नीरज जी ने खुद प्रदान की है

शायद ये उनकी समीक्षा का ही कमाल है की मैं राजेश रेड्डी और हस्ती मल हस्ती जैसे शायरों को सुन पाया पढ़ पाया। इस किताब की तारीफ के लिए चाहे कितना ही कुछ लिख लो कम ही है इसलिए आप सब सुधी पाठक भी इस किताब का लाभ उठाये

नीरज जी के ही शब्दों में इस किताब को पाने का तरीका 

शिवना प्रकाशन से संपर्क करके 

शिवना प्रकाशन पी. सी. लैब, सम्राट कॉम्प्लेक्स बेसमेंट बस स्टैंड , 
सीहोर - 466001 (म. प्र.) फ़ोन : 07562 - 405545, 0762 - 695918
E-mail: shivna.prakashan@gmail.com

या फिर नीरज जी को उनके मोबाइल (+91- 9860211911) पे  उनके इस बेहतरीन कार्य के लिए बधाई देते हुए इस किताब को प्राप्त करने का तरीका पूछ सकते है

या फिर आप नीरज जी को ईमेल neeraj1950@gmail.com भी कर सकते है



चलते चलते उनकी सरलता को दर्शाता उनका एक शेर 

'नीरज' सुलझाना सीखो 
मुद्दों को उलझाना क्या 




2 comments:

  1. Amit Ji aap ke sneh se abhibhoot hoon...jald hi milenge...aur haan "yayavari Yadon ki " jald hi aapko bhijvata hoon. Agar aap jaisa koi sahity premi meri is kitab ko padhna chahe to uska postal address mujhe bhej den...kitab us tak pahuncha di jayegi.Pathak tak kitab pahunchne se hi kitab prakashit karvane ka maksad poora hota hai ...Sneh banaye rakhen.
    Neeraj

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  2. आपका धन्यवाद; ज्ञान जहा से भी मिले बटोर लेना चाहिए; फिर आपके पास तो ज्ञान का अथाह भंडार है, आप जैसे निष्काम साहित्य सेवा करने वाले बिरले ही मिलते है

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