Wednesday 9 August 2017

78. दिन आज कयामत के आये है


दिन आज कयामत के आये है 
निगाहे चार आज कर आये है

दोस्त मेरे आये न आये 
रकीब तो मेरी कब्र पे आये है

मैकदे में रिंद आज फिर आये है 
साकी की निगाहो से जाम फिर छलका आये है

शेर तो हम रोज ही लिखते आये है 
पर आज ग़ज़ल कह आये है

लिखने को तो बहुत कुछ लिखते आये है 
नाम आज उसका लिख आये है

हम तो सदा ही सुनते आये है 
आज हाल-ए-दिल हम भी सुना आये है

यू तो दुआ रोज ही मांगते आये है 
'सागर' आज उससे उसी को मांग आये है

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